प्रश्न और उत्तर

दो मार्ग

(मत्ती 7:13-24) 
अंग्रेज़ी में एक पुरानी कहावत है, "हर मार्ग रोम को जाता है"| संसार की उस पुरानी राजधानी के बारे में यह सच था या नहीं, हम नहीं कह सकते हैं| मगर कुछ ऐसे हैं जो इस कहावत को संसार के धर्म और अपने अन्तिम गंतव्य स्थान पर लागू करते हैं| "हर धर्म स्वर्ग ले जाता है"|  वे कहते हैं, पर क्या यह सही है? हमें इस की छानबीन करनी चाहिये क्योंकि यह मृत्यु और जीवन, सनातन प्रसन्नता या सनातन दुःख का प्रश्न है|
परमेश्वर द्वारा भेजा गया, प्रभु यीशु मसीह एक महान सिक्षक थे जो सत्य और परमेश्वर के पास जाने का मार्ग बताने आये| पर यीशु महान शिक्षक के अलावा और भी कुछ थे| यीशु स्वयं परमेश्वर का पुत्र हैं| यीशु स्वयं सत्य हैं| यीशु स्वयं परमेस्वर के पास जाने का मार्ग हैं| यीशु स्वयम जीवन हैं| और उन सब को जो उन पर विश्वास करते हैं जीवन को देने वाले हैं| परमेश्वर पवित्र है, और आवश्यक है कि वह पाप का दंड दे| प्रभु मसीह ने क्रूस की निर्दय मृत्यु को अपनाया ताकि वह पापी के दंड को भुगते| अब हर वे, जो इस सत्य को स्वीकार करते हैं और उसे पाप की शक्ति और दंड से छुटकारा दिलाने वाला मानते हैं, परमेश्वर के वचन के अनुसार जो झूटा नहीं है, अनन्त जीवन की भेंट पाते हैं|
अनन्त जीवन क्या है? हम सब जानते हैं कि इस पृथ्वी पर हमारा जीवन थोड़े दिनों केलिये है| कुछ सालों के बाद हर मनुष्य मरता है| मौत के बाद एक और जीवन है| वह मनुष्य, जिस ने प्रभु यीशु मसीह को अपना तारनहार करके स्वीकार किया है, परमेश्वर के उपस्थिति में सनातन आनन्द के साथ रहेगा| और उस की उपस्थिति में आनन्द की परिपूर्णता है| यह सनातन जीवन है| लेकिन वह मनुष्य जो परमेश्वर के इस अनन्त जीवन की भेंट को इन्कार करता है, परमेश्वर के उपस्थिति में से हमेशा केलिये हटा दिया जायेगा और शैता़न और उस के दुष्ट साथियों के साथ एक अंधकारपूर्ण स्थान में दुःख और पीडा़ के साथ डाल दिया जायेगा| मृत्यु का अर्थ है अलगाव| परमेश्वर और जो कुछ अच्छा है उन सब से अलगाव का अर्थ है सनातन मृत्यु| परमेश्वर हर मनुष्य के सामने इस जीवन में इन दो मार्गों का चुनाव रखता है| प्रभु यीशु मसीह ने इस चुनाव को और साफ़ बताये जब उन्होंने कहा- "चौड़ा है वह फाटक और चाकल वह मार्ग जो विनाश को पहुँचाता है, और बहुतेरे हैं जो उस से प्रवेश करते हैं"| हम दोनों मार्गों को परमेश्वर के वचन में देखते हैं| हम चौड़ा मार्ग को जो जीवन की ओर ले जाता है, देखते हैं, और उस पर उन सारी चीज़ों को देखते हैं जिससे शैता़न लोगों को चौड़े मार्ग पर ललचा ले जाता है| धन, सांसारिक सुख,शरीर के आनन्द जैसे वेश्यागमन और शराब पीना,सिनेमा,जुआ,चोरी,नीच तरह के नाच आदि बहकावों को भी हम देखते हैं| मनुष्य की बुद्धि और हिक़मत को देखते हैं, जिस से कि लोग विनाश पर पहुँच जाते हैं|
यह उन बहुत से बहकावों में से कुछ उदाहरण हैं जिसे शैता़न लोगों को चौडे़ मार्ग पर विनाश की ओर जाने केलिये काम में लाता है| प्रभु यीशु मसीह ने दूसरे मार्ग के बारे में भी बताया| उन्होंने कहा - "सकेत है वह फाटक और संकरा है वह मार्ग जो जीवन को पहुँचाता है और थोडे हैं जो उसे पाते हैं"| उन्होंने सुननेवालों से यह भी कहा - "सकेत फाटक से प्रवेश करो"| आप देखोगे कि लोगों केलिये इस संकरे मार्ग पर चलना इतना कठिन क्यों है? प्रथम केवल एक द्वार है, जिसके द्वारा ही लोग संकरे मार्ग पर आ सकते हैं| फिर दो महत्वपूर्ण सीढ़ियाँ हैं| जिन्हें द्वार पर आने केलिये चढ़ना पड़ता है| पहली सीढी़ है, पछथावा| हमें अपने अनेक पापों केलिये दुःखी होना चाहिये और पछ्ताना चाहिये, कि उस पाप के रास्ते को फिर मुड़ कर भी न देखें| दूसरी सीढ़ी है, विश्वास| हमें यह विश्वास करना है कि जीवन के मार्ग पर प्रवेश केवल प्रभु यीशु मसीह के क्रूस के द्वारा है| उस क्रूस पर अपनी मृत्यु और तीसरे दिन के पुनरुत्थान के द्वारा उन्हों ने स्वयं परमेश्वर के पास जाने का एक नया और जीवित मार्ग बनाया है| यीशु ने कहा -"द्वार मैं हूँ, यदि कोई मेरे द्वारा भीतर प्रवेश करे तो उद्धार पायेगा"| यीशु ने यह भी कहा "मार्ग मैं ही हूँ, बिना मेरे द्वारा कोई पिता परमेश्वर के पास नहीं पहुँच सकता"| इस संकरे मार्ग पर जो कोई चलना चाहे,उसे क्रूस पर झुकना होगा| उसे मानना ही पडे़गा कि वह पापी है और यीशु मसीह को तारनहार मानना पडे़गा| यह संकरे मार्ग आसान नहीं है| यह शरीर के लालचों को इन्कार कर और परमेश्वर की हर हुक़्म को मानने के द्वारा स्वयं पर अनुशासन करने का कठिन मार्ग है| इस मार्ग पर चलने वालों का उद्देश्य होता है कि वे दुश्मनों से भी प्रेम करना सीखें और दूसरों को सही मार्ग पाने में सहायता करें| यह सनातन जीवन का मार्ग है जिस से हमें अनन्त आनन्द मिलता है| इस मार्ग पार हमारे तारनहार हमारे साथ मित्र और अगुवा की नाई चलाता है| उस पर विश्वास करने वालों के साथ जीवन के मार्ग पर चलने का उन्हों ने वादा किया है| मार्ग जब कठिन हो जाता है तो वह हमें गिरने से बचायेगा और अन्त में हमारे स्वर्गीय स्थान पर ले आयेगा|
दोनों मार्ग आप के सामने हैं| चुनाव कीजिये और आज ही सही चुनाव कीजिये| क्या आप बुद्धिमान होकर संकरा मार्ग न चुनेंगे? इसके अंत में महिमा,आनन्द और सनातन जीवन है| प्रभु यीशु मसीह की आवाज़ को सुनिये| सकेत फाटक से प्रवेश कीजिये| वह फिर कहते हैं कि जो कोई उनके पास आयेगा उसे वे कभी नहीं निकालेंगे| यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे और अपने प्राणों की हानि उठाये तो उसे क्या लाभ होगा? 


 



क्या आप में अच्छाई जीवित है?

लेखक : रॉय ओक्सनिवाड
एक अच्छा जीवन जीने की कोशिश एक अंतहीन और थकाऊ भरा काम है। हम अपने बुरे कामों से दूर रहने के लिए संघर्ष करते रहते हैं। क्यों कि हम एक तटस्थ दुनियाँ में नहीं रहते हैं, बल्कि ऐसी दुनियाँ में जहाँ लालच, जरूरतें, और तकलीफ़ें हैं, हम हमारी पूरी एकाग्रता और शक्ति से अच्छे काम करने का प्रयास करते हैं। हम जानते हैं कि जीवन किस तरह जीना चाहिए लेकिन ये चीजें हम में बची हुई थोड़ीसी शक्ति को भी निकाल देतीं हैं। क्या परमेश्वर हमारे इस संघर्ष को समझते हैं? क्या वह हमारी कमज़ोरियों को अनदेखा करते हैं? या परमेश्वर हम से एक अलग प्रकार का जीवन जीने की उपेक्षा करते हैं - एक ऐसा जीवन, जहाँ हम में उचित कार्य या काम करने की शक्ति हो।
सृष्टि
परमेश्वर ने मानव जाति को दोषरहित या बिना कमज़ोरियों के बनाये थे। पहले मनुष्य - आदम और हव्वा - दोषहीन और सम्पूर्ण थे। वे अच्छे थे और अच्छाई करने के लिए वांछित थे, क्योंकि अच्छाई के तत्व पूरी तरह से उन में थे। उन में बुराई या दुष्टता का कोई नामोनिशान नहीं था। वास्तव में बाइबिल बताती है कि परमेश्वर ने मनुष्यों को बनाने के बाद, उन्होंने खुद कहा है कि उनकी रचना अच्छी थी। अच्छाई ने लोगों के लिए जीवन और दिशा दीया है।
परमेश्वर ने जिस प्रकार हमें रहने के लिए बनाया था उस प्रकार हम क्यों नहीं हैं?
पतन
आदम के समय से लेकर अब तक शैतान जो परमेश्वर का दुश्मन है, परमेश्वर की सृष्टि को नष्ट करने की कोशिश में है। शैतान ने आदम और हव्वा को परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन करने के लिए बहकाय़ा, और वे उसके प्रलोभन से गिर गए। जब मनुष्यों ने परमेश्वर की बात नहीं मानी, तब दो बातें हुईं। सबसे पहली बात - बुराई उन में प्रवेश कर गई। उस समय से, हर व्यक्ति को उसके अंदर की बुरी और दुष्ट स्वभाव से संघर्ष करना पड़ रहा है। लेकिन यह बुरा स्वभाव परमेश्वर की सृष्टि के मूल योजना का हिस्सा नहीं था। दूसरी बात - परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन करने की वजाह से मनुष्यों में अच्छाई मर गई थी। हम अच्छाई को तो समझते हैं, लेकिन हमारे भीतर अच्छाई को जीवित नहीं पाते हैं। वास्तव में, हमारे भीतर से उत्पन्न होनेवाली बुराई को दूर करते हुए, अच्छाई करने के लिए हमारी पूर्ण शक्ति से प्रयास करते रहते हैं। लेकिन जब हम थक जाते हैं या कोई हमें ठेस पहुँचाता है, तब हमारे अन्दर की बुराई अच्छाई पर हावी हो जाति है, और अच्छाई करने के लिए हमें प्रयास करने की आवश्यकता पड़ती है।
उदाहरण के लिए, एक पति जानता है कि उसे उसकी पत्नी से किस तरह का व्यवहार करना चाहिए। वह जानता है कि वह उस से प्यार करना चाहिए, और उस से अच्छी तरह से व्यवहार करना चाहिए। इस तरह वह जानता है कि उसे क्या करना चाहिए लेकिन वैसा करने में बहुत सारे बार विफल रहता है। इसी तरह, माता पिता अपने बच्चों के प्रति संवेदनशीलता और समझदारी के साथ रहने की कोशिश करते हैं, लेकिन अपने बच्चों से व्यवहार करने के वक़त अपना गुस्सा निकाल देते हैं, यहाँ तक कि बच्चों को उस तरह की बुराई कहीं और जाकर सीखने की ज़रूरत भी नहीं पड़ती है। हम उन्हें अच्छाई करने की शिक्षा दे सकते हैं, और लगातार सुधार सकते हैं, लेकिन हमारे उत्तम प्रयासों के बावजूद भी वे गलत काम करते रहते हैं।
हमारे जीवन की बुराइयों को नियंत्रण करने के लिए - हम और आप - क्या कर सकते हैं? हम में जो अच्छाई थी उसे पुनर्जीवित कैसे कर सकते हैं?
जीवन को बहाल करने का प्रयास
हमारे जीवन में अच्छाई को बहाल करने के लिए विभिन्न प्रकार के सुझाव लोग देते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि ज्ञान ही अच्छाई को प्राप्त करने की कुंजी है। लोगों को हम जितना अधिक उपदेश देंगे, वे उतने ही अच्छे और बेहतर बन जायेंगे। परन्तु लोग अपने ज्ञान और बुद्धि का उपयोग अपने स्वार्थ के लिए या धोखा करने के लिए प्रयोग करते हैं। ज्ञान हमारे जीवन में अच्छाई को पुनर्जीवित नहीं कर सकती है।
दूसरे कुच लोग कहते हैं कि अनुशासन ही अच्छाई को प्राप्त करने की कुंजी है। अगर हम अपने जीवन, विचार, आदतें, अभ्यास, इत्यादि में अधिक अनुशासित रहें, तो हम बेहतर बनेंगे और अधिक अच्छे काम करेंगे। परन्तु हमारे निकटतम लोग जानते हैं कि हम वास्तव में किस तरह के व्यक्ति हैं। अनुशासन के माध्यम से हम अपने मन में एक नीजी दुनिया बना सकते हैं, लेकिन हम अभी भी इसी दुनिया में रहते हैं जो बुरी है। अक्सर अभ्यास हम में अच्छाई को पुनर्जीवित करने में अप्रभावी रहा है।
धर्म एक और विकल्प है। अगर हम किसी चर्च, मस्जिद, आराधनालय या मंदिर को जाएंगे, या कोई नया धार्मिक दृष्टिकोण को अपनाएंगे, तो शायद हम अच्छे लोग हो जाएंगे। आम तौर पर एक नये धर्म से हम दुनिया पर एक और दृष्टिकोण प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन दुर्भाग्य से, वह हमारे भीतर एक नया जीवन की शुरुआत नहीं कर सकता है।
अंत में कुछ लोग कहते हैं कि, अच्छाई को प्राप्त करने के लिए सबसे अच्छा विकल्प कानून ही है। यदि ऐसा विधान हो जो हमारे व्यवहार को नियंत्रित कर सके, विशेषकर हमारे नैतिक व्यवहार को नियंत्रित कर सके, तो हम बेहतर नागरिक बन जाऐंगे। परन्तु, अच्छाई करने की इच्छा हम में पैदा करने की बजाय अधिक नियम अधिक अत्याचार के कारण होते हैं। हमारे मानवी स्वभाव, हमारे व्यवहार और हमारे कार्यों को न्यायोचित ठहराने के लिए कानून के नियमों से बचने की तरीके ढूँढते रहता हैं। इसलिए कानून हमारे जीवन में अच्छाई नहीं ला सकती है।
ज्ञान, अनुशासन, धर्म, और कानून हमारे जीवन के लिए बहुत कुछ दे सकते हैं। ये सभी उपाय हमारे बुरे व्यवहार पर अंकुश लगाने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन वे हम में कभी अच्छाई को पुनर्जीवित नहीं कर सकते। वे केवल बाहर से प्रभावित करते हैं। जब हम अपने अंदर की बुराई को नियंत्रित करने पर ध्यान नहीं देते हैं, तब हम उसके प्रभावों का शिकार फिर से हो जाते हैं।
क्या “अच्छा” रहने के हमारे प्रयासों से हमें सिर्फ़ कुछ समय तक ही संतुष्ट रहना चाहिए?
क्या हम काफ़ी अच्छे हैं?
क्योंकि हर समय अच्छा रहना बहुत मुश्किल है, कई लोग यह निश्चित कर लेते हैं कि हर समय अच्छा रहना एक असंभव लक्ष्य है। वे कहते हैं कि कई अच्छे कामों को करके हम अपने बुरे कामों की भरपाई या मुआवजा कर सकेंगे। यह बात लगती ऐसी है कि मानो हमारे सभी काम एक पैमाने पर रखेगए हैं, और हमें सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे जीवन में बुराई से ज्य़ादा अच्छाई का पलड़ा भारी रहे। इस तरह हमारा जीवन एक परिक्षा हो जाता है, कि हम बुराई से अधिक अच्छाई कर सकते हैं या नहीं।
बाइबिल कहती है कि परमेश्वर ने हमें एक उद्देश्य के लिए बनाया है, सिर्फ़ एक परीक्षण करके देखने के लिए नहीं कि हम बुराई से ज़्यादा अच्छाई करते हैं या नहीं। परिपूर्ण अच्छाई के सात जीने वाला जीवन ही एक सच्चा जीवन है, जिस केलिए परमेश्वर ने हमें बनाया है। परन्तु उस के लिए पहले हमारे भीतर अच्छाई को पुनर्जीवित होना चाहिये।
तराजू के बजाय हमारा जीवन एक भराहुआ गिलास की तरह है जो उन सारे अच्छे कार्यों से ऊपर तक भराहुआ है जिन्हें परमेश्वर हम से करवाना चाहता है। जब हम कोई अच्छा कार्य करते हैं - जो हम से संभव श्रेष्ठ से श्रेष्ठ कार्य हो - तौभी हमारे लिए कुछ गर्व की बात नहीं है, क्योंकि हम हमारी तरफ़ से उस गिलास में कुछ भी नहीं जोड़ते हैं, हम तो सिर्फ़ अपने कर्तव्य कर रहे हैं, जो हमारे लिए परमेश्वर का उद्देश्य है।
कई बार, हम अपने गिलास से निकालते हैं, और इस तरह हमारे जीवन में परमेश्वर की योजना को नहीं कर पाते हैं। यह तब होता है जब हम एक बुरा काम करते हैं, या अच्छा काम करने का मौका छोड़ देते हैं। यह तब भी होता है, जब हम एक अच्छा काम को हमारे स्वयं लाभ या इच्छाओं के लिए करते हैं। उदाहरण के लिए, हम अपने जीवन साथी से कुछ प्राप्त करने केलिए उस के साथ दया से भरा व्यवहार कर सकते हैं, लेकिन इस तरह करने से वास्तव में अच्छाई से रहने की परमेश्वर की उस योजना को हम खो देते हैं। हमारे पूरे जीवन में, हम उस गिलास से नेकालते रहते हैं, और अंत में वह अच्छा जीवन नहीं जी पाते हैं जो हमारे लिए परमेश्वर की योजना है।
एक अच्छा इन्सान बनने के लिए हमारी एक मात्र उम्मीद परमेश्वर ही है, जिसने हमें सृजा है। परमेश्वर हमारी मदद कैसा करेगा? बुराई को नियंत्रित करके अच्छाई को जीवित करने के लिए उसने क्या किया है?
परमेश्वर का हल
परमेश्वर के पास दुनिया के सभी लोगों को बुराई के बिना फिर से बनाने की शक्ति है। परन्तु ऐसा करने के बजाय, वह अपनी रचना का सम्मान करके उसे संरक्षित रखा। हमारे जीवन में दखल देने के लिए उसने दूसरे तरीके से अपनी शक्ति का उपयोग करने का निर्णय किया है। मनुष्यों पर शैतान की पकड़ जो है, उसे वह नष्ट करके हमें एक नया जीवन देता है ताकि हमारे भीतर अच्छाई फिर से जीवित हो।
यह दुनिया जिसे परमेश्वर ने बनाया है, परमेश्वर और शैतान के बीच में एक युद्धक्षेत्र का समान है। परमेश्वर ने यीशु मसीह को इस दुनिया में इसलिए भेजा ताकि शैतान और उसके कामों का सामना करें। शैतान ने अपने सारे तरकीबों को यीशु मसीह पर आज़माया था। यीशु मसीह को गलत समझकर भ्रष्ट लोगों ने उन्हें सताया। उनकी लोकप्रियता को झूठ के द्वारा नष्ट किया। अंत में, शैतान ने यीशु मसीह को एक अन्यायी सरकार को इस्तमाल करके उन अपराधों केलिए मार दिया था जो उन्होंने कभी नहीं किया। यह सारी दुष्टता को यीशु मसीह ने स्वयं अपनी इच्छा से अपने ऊपर लेलिया, लेकिन शैतान उन्हें कभी हरा नहीं पाया। उन्होंने कभी भी बुराई के बदले में बुराई नहीं किया बलकि अच्छाई से बुराई पर विजय पाया।
शैतान को हराने के लिए यीशु मसीह ने जानबूझकर मृत्यु को भी अनुभव किया था जो शैतान का आखरी हथियार था, और उस पर भी विजय पाया। फिर से जी उठने की वजह से यीशु ने यह दिखा दिया कि आप शैतान से भी अधिक शक्तिशाली हैं। इस दुनिया में अब तक के जीवित लोगों में केवल यीशु मसीह ही एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हों ने बुराई और मौत पर विजय प्राप्त किया है।
यीशु मसीह ने दिखा दिया है कि वे शैतान से ताकतवर हैं। यीशु मसीह शैतान की ताकतवर बंधनो को तोड़े हैं, जिस वजह से हमें जीवन देने की शक्ति उनके पास है। केवल वे ही हैं जो हमरे अंदर की अच्छाई को फिर से जीवित करसकते हैं।
बुराई पर विजय प्राप्त करनेवाली अपनी शक्ति को हमें यीशु कैसे देते हैं?
यीशु मसीह के पीछे होना
एक समय एक व्यक्ति था जो दावा किया था कि वह कारागार और उसके सभी पहरेदारों से भी अधिक ताकतवर है। इस बात को सुनकर कारागार के पहरेदारों ने उस व्यक्ति को बन्दी बनाने गए, लेकिन वो वहाँ से गायब हो गया। क्या वह व्यक्ति सचमुच कारागार के पहरेदारों से अधिक ताकतवर था?
एक और व्यक्ति था जिस ने दावा किया कि वह कारागार और उस के सभी पहरेदारों से भी अधिक ताकतवर है। जब पहरेदारों ने उस व्यक्ति को बन्दी बनाने गए, उस ने बाहर आकर उनसे मिला। वे उसे बन्दी बनाये और उसे बुरी तरह मारे, उसे बान्धे और कारागार के कोठरियों के सब से पिछले तहखाने में डालदिये। दरवाजे पर पहेरेदारों को छोड़कर वहाँ उस को बंद कर दिये। कारागार के अधीक्षक अपने दोस्तों के साथ अपने कार्यालय में बैठे हुए उस व्यक्ति पर और उस के दावों पर हँस रहे थे।
लेकिन उनकी हँसी ज्यादा देर नहीं रही। जल्द ही वे कारागार के भीतर से आवाज़े सुनीं। उस व्यक्ति ने अपनी जंजीरों को तोड दिए, धक्का देकर दरवाजा खोलकर पहरेदारों को एक तरफ फेंका और एक एक करके कारागार की सारी कोठरियों को खोल देते हुए कहा कि "जो कोई भी इस कारागार को छोड़कर आना चाहता है वह मेरे पीछे आए"।
कैदियों में से कुछ लोग डरगए थे, कि अगर वे इस व्यक्ति के साथ जुड गए और अगर वह पकड़ा जाता, तो उनको भी उसके साथ साथ पहले से भी बुरा अत्याचार (या यंत्रणा) भुगतना पडेगा। लेकिन बाकी लोगों ने कहा, "देखो, वे पहले ही उसके साथ जितना बुरा कर सकते थे उतना तो कर चुके, और उसने भी दिखा दिया था कि वह उनसे अधिक ताकतवर है। इसलिए मैं उसके साथ बाहर जा रहा हूँ''। जो लोग उनके साथ कारागार से बाहर निकले थे वे लोग जानगए कि कोठरियों के दरवाजे खोलने की और रास्ते में आनेवाले पहरेदारों को हारादेने की शक्ति को उस व्यक्ति ने उन्हें भी प्रदान किया है। अंत में, वे उसके पीछे उसके धार्मिकता के राज्य तक चलेगए।
यीशु मसीह ने वादा किया है कि जो कोई भी उन पर विश्वास करते हैं और उन्हें अपने जीवन में स्वीकार करते हैं, उन में अच्छाई को पुनर्जीवित करेंगे। यह वही कैदी है जो पीटा गया था और फिर भी बुराई की कारागार से बच निकला है। वे हमें उनके साथ अच्छाई के एक नए जीवन में बुला रहे हैं। 
क्या होता है जब हम यीशु मसीह का अनुसरण करते है?
यीशु मसीहा में जीवन
ब यीशु मसीह हम में अच्छाई को फिर से जीवित कर देते हैं, हम सही विकल्प बनाने के लिए स्वतंत्र होते हैं। तब हम में बाहरी रूप के बजाय अंदर से ही अच्छे काम करने की इच्छा रहती है। हम में अच्छाई करने की एक नई शक्ति रहती है। बाइबिल कहती है कि हम पूरी तरह से नए लोग बन जाऐंगे। परमेश्वर ही हमारे इस नए जीवन का आधार है।
हमें अभी भी एक समस्या है। हमारे अंदर की बुराई अभी भी हम में जीवित है। स्वर्ग में, परमेश्वर हम में से वह बुरा स्वभाव को पूरी तरह से निकालकर, वही हालत में पुनर्स्थापित करने का वादा करता है, जिस में वह हमें आदि में सृजा था। तब तक हमरे अंदर अच्छाई और बुराई के बीच एक संघर्ष होते ही रहेगा।
काई बार बाहरी दबावों की वजह से हमें समझौता भी करना पड़ता है। जिस दुनिया में हम रहते हैं वह तटस्थ नहीं है। अपनी परिस्थितियाँ और दुनिया के लोग भी हमें समझौते करने के लिए प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, हमारे सहकर्मी नहीं चाहते हैं कि हम उनके बारे में अपने मालिक से कहें कि वे समय पर काम को नहीं आते हैं, या काम से चीज़ें चुराकर उन्हें धोखा दे रहे हैं। वे चाहते हैं कि हम भी उनकी तरह ही करें, ताकि हम उनके बारे में मालिक से ना कहें। शैतान भी हमारे नए जीवन का विरोध करता है। वह हमें नष्ट करना चाहता है, और हमें झूठ के सहारे धोखा देने की कोशिश करता है।
परमेश्वर ने इस संघर्ष में हमारी किस तरह सहायता की है?
इस नए जीवन को जीना
इन हालातों का सामना खुद करने के लिए परमेश्वर हमें छोड़ नहीं दीया है। परमेश्वर ने यीशु मसीह के द्वारा हमारे अन्दर अच्छाई को पुनर्जीवित किया है। इतना ही नहीं बल्कि वह हमें इस नए जीवन जीने के लिए पर्याप्त से अधिक प्रदान किया है। एक परिपूर्ण और सार्थक नये जीवन को प्रदान करने के लिए परमेश्वर ने हमें तीन बहुत महत्वपूर्ण तत्व दिए हैं : बाइबिल, अपने पवित्रा आत्मा और एक नया समुदाय जिसे कलीसिया कहते हैं।
बाइबिल हमारे जीने के लिए मार्गदर्शन है। यह शैतान के सब झूठों का मुकाबला करती है। इस में हम केवल परमेश्वर की व्यवस्था को ही नहीं पाते हैं, बल्कि यह इस दुनिया और हमारे जीवन के बारे में परमेश्वर का दृष्टिकोण भी है। बाइबिल परमेश्वर का वचन है, और यह हमें परमेश्वर की इच्छा को समझाने में मार्गदर्शन करती है। इसके बिना हम हमारी ज़िंदगी में नजरिए या परिप्रेक्ष्य खो देंगे। क्योंकि हम तटस्थ नहीं हैं, हमें हमारे विचारों को प्रभावित करने के लिए परमेश्वर के वचन की जरूरत है।
पवित्र आत्मा परमेश्वर का आत्मा है। जब हम यीशु मसीह से नया जीवन प्राप्त करते हैं तब वह हमारे भीतर निवास करना शुरू करता है। मसीह में जीवित उस व्यक्ति को पवित्र आत्मा बताता है कि उसके कौन से विचार और कार्य परमेश्वर के मार्ग के विरुद्ध हैं। इस तरह परमेश्वर खुद ही उस व्यक्ति में रहता है, जिस वजह से वह शैतान और उसके दुष्ट आत्मों से नहीं डरता। जब वह व्यक्ति अपने भीतर के पवित्र आत्मा की आवाज सुनता है, तब वह सही निर्णय करेगा और परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चल सकेगा।
कलीसिया परमेश्वर के लोगों का समुदाय है। हम एक नए परिवार का सदस्य हैं, जो परमेश्वर का परिवार है। विश्वासियों का यह समुदाय कई उद्देश्यों के लिए काम करता है। कलीसिया विश्वासियों में मसीही जीवन का नया रूप देता है। यह हमें उन लोगों के उदाहरण भी देती है जो बड़े से बड़े मुशक़िल समय में भी, अपनी दैवी विधेयता के लिए बड़ी क़ीमत अदा करके पवित्र आत्मा का अनुसरण करते हैं। ये उदाहरण उन लोगों केलिए सकारात्मक आदर्श बनते हैं जो अपने मन फिराव के बाद मसीह में विश्वास करते हैं। और जब हम अपने नए जीवन के खतरनाक रास्तों से गुज़रते हुए संघर्ष करते हैं, तो ख़ुदा की कलीसिया हमारा प्रोत्साहन और मदद करते हुए इस नए जीवन में दिशा करती है।
अगर इन तीन अंशों या हिस्सों में से कोई एक भी मौजूद नहीं हो, तो वह नये मसीही विश्वासी बहुत आसानी से शैतान के द्वारा बिछाया गया जाल में गिर सकता है। परमेश्वर के द्वारा दिये गए बाइबल, पवित्रा आत्मा और कलीसिया की मदद के बिना इस दुनिया में बुराई का विरोध करना असंभव है।
क्या मसीह में यह नया जीवन हमें न्याय के दिन के लिए तैयार करता है?
न्याय का दिन
हम अक्सर सोचते हैं कि परमेश्वर हमारा न्याय और दंडाज्ञा हमारे अच्छे या बुरे कामों के अनुसार करेगा। हालांकि, हम वही करते हैं जो हमारे अंदर रहती है। हमारे भीतर उनका नया जीवन है या नहीं, इसी के अनुसार परमेश्वर हमारा न्याय और दंडाज्ञा करेगा। अगर हमारे भीतर यह नया जीवन है, तो न्याय के दिन परमेश्वर हमारे अंदर की बुराई को हटा देगा। तब हम उसी तरह से बन जायेंगे जैसे परमेशवर ने वास्तव में हमें बनाया था, और वह हमें स्वर्ग में ले जाएगा। यदि हमारे भीतर परमेश्वर का यह नया जीवन नहीं है, तो हम में जो अच्छाई की समझ है वह हमारे अंदर से हटा दिया जाएगा, और हमें नरक में भेजा जाएगा, जो ऐसी जगह है जो शैतान और उसके दुष्ट आत्मों के लिए है।
क्या आप में मसीह का यह “नया जीवन” है? क्या आप वास्तव में एक अच्छा इंसान बनना चाहते हैं?
आपका निर्णय
अधिक धर्म, ज्ञान, अनुशासन, या कानून एक व्यक्ति को नया जीवन नहीं दे सकते हैं। अगर आप के अंदर यह नया जीवन प्रवेश करना चाहिए, तो पहले शैतान की शक्ति को तोड़ने की आवश्यकता है। कोई नबी, गुरु, धर्म या साधु आप को यह नया जीवन दे नहीं सकते हैं; या शैतान और उसके बुरे असर से आप को पर्याप्त रूप से बचा नहीं सकते हैं।
यीशु मसीह ने जो आप के लिए किया है वही वास्तव में एक अच्छा जीवन जीने की कुंजी है। वे एक परिपूर्ण जीवन जीए। उन्होंने बुराई की शक्ति को ख़ुद अनुमति दिया था, ताकि उन्हें मार ड़ाले, लेकिन फिर से जीवित होने के द्वारा शैतान की शक्ति पर परिपूर्ण विजय पाए। अब, येशु मसीह सब को यह नया जीवन देना चाहते हैं जो उस के लिए उन से पूछते हैं। बाइबिल कहती है कि “परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उस ने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया” (यूहन्ना 1:12)। आप को सिर्फ उनसे इस नये जीवन का माँग करना है; और उस केलिए उन पर विश्वास करना है। जो कोई उन पर विश्वास करंगे, वे नए सिरे से पैदा होंगे और उनके पुत्र बनेंगे। जब हम परमेश्वर का नया परिवार में लाए जाते हैं, तो हमारे पिछले जीवन की शर्म को पूरी तरह वह निकाल देता है।




क्या यीशु मसीह ने कहा है कि मैं खु़दा हूँ, या मेरी आराधना करो ?

सवाल:-
आज दुनिया में मसीही लोग यीशु मसीह को पूजते हैं, लेकिन आप मुझे बाइबल में यह दिखासकते हैं क्या जहाँ यीशु मसीह ने कहा हो कि मैं खु़दा हूँ, या मेरी आराधना करो ?

जवाब:-
इन ही शब्दों में यह सवाल मैं बहुत बार सुनचुका हूँ | मेरे जवाब में शायद आप को इस विषय को समझने की मदद मिलेगी |

यीशु  ने कहीं भी ऐसा नहीं कहा है कि "मैं ख़ुदा हूँ" या "मेरी आराधना करो"|

अगर कोई आदमी आप के पास आकर यह कहे कि "मैं ख़ुदा हूँ, मेरी आराधना करो" तो क्या आप -
1) उस पर विश्वास करने केलिये तैयार हैं?
2) उसकी आराधना करने केलिये तैयार हैं?

कोई भी एकेश्वरवादी इस बात को सुनने के बाद इस तरह का दावा करनेवाले इन्सान को एक ईश्वरनिन्दा करनेवाला या कुफ़्र बकनेवाला कहेगा|
अगर तुम्हारी भी यही प्रतिक्रिया है तो तुम प्रभु यीशु मसीह से वह बात क्यों पूछ रहे हो जो तुम खुद मानने के लिये तैयार नहीं हो| इस तरह का दावा करनेवाले लोगों को आम तौर पर उन्माद या पागल माना जाता है| यीशु मसीह को इन्सानों का यह प्रतिक्रिया मालूम है और इसी वजह से उस नादान या बेवक़ूफ़ तरीके से अपने दावे को पेश नहीं किया| लेकिन अप्रत्यक्ष या परोक्षार्थ से अपने दावे को ज़रूर पेश किया है|

यीशु मसीह ने अपने देवत्व का सबूत बाइबल में ज़रूर दिया है| अगर ऐसे सबूत बाइबल में हैं तो आप को उन सबूतों को मानना ही पड़ेगा और उनकी आराधना करनी ही पड़ेगी| परमेश्वर को स्वीकार करने से पेहले उसे हम यह हुकुम तो नहीं दे सकते कि किस रीति वह अपने आपको प्रकट करे|

उदाहरण केलिए यूहन्ना की इंजील में (अनन्त जीवन के बारे में बात करते हुए) यीशु मसीह ने कहा है कि- "पुनरुत्थान और जीवन मैं हूँ; जो कोई मुझ पर विश्वास करता है वह यदि मर भी जाए तौभी जीएगा"| अनन्त जीवन भी उन पर विश्वास करने से ही मिलने का शर्त पर आधारित है| खु़दा के सिवा और कोई ऐसा कहे तो वह ज़रूर ईश्वरनिंदा होजायेगा| इस तरह का दावा तो अलौकिक और अनोखा है| और उसे करने का अधिकार मसीह के पास होने का सबूत क्या है? इस दावा करने के वक़्त उसी दिन मसीह ने जो किया उसे हम वहीं पढ़ सकते हैं-

यह कहकर उसने बड़े शब्द से पुकारा, "हे लाज़र, निकल आ!" जो मर गया था वह कफ़न से हाथ पाँव बँधे हुए निकल आया, और उसका मुँह अँगोछे से लिपटा हुआ था|  यीशु ने उनसे कहा, "उसे खोल दो और जाने दो"| (यूहन्ना11:43-44).

अगर सारी इंजीलों को याने सुसमाचारोंको आप पढेंगे तो उस में हमेशा यह पाते हैं कि-
*यीशु परमेश्वर की तरह बात करते हैं
*यीशु परमेश्वर की तरह काम करते हैं
*इस दावा करने का अधिकार का सबूत भी असाधारण और अद्भुत कामों को करने के ज़रिये देते हैं|

तीन साल उन के पास रहने के बाद भी एक शागिर्द ने उन से यह पूछा कि -
"पिता को हमें दिखा दे"
तो प्रभु ने जवाब में यह कहा है कि-
"हे फ़िलिप्पुस, मैं इतने दिन से तुम्हारे साथ हूँ,और क्या तू मुझे नहीं जानता? जिसने मुझे देखा है वह पिता को देखा है|.....  मेरा विश्वास करो कि मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में है; नहीं तो कामों ही के कारण मेरा विश्वास करो| (यूहन्ना 14:9-11)

यीशु मसीह तो उनके चेलों से और उन लोगों से जो उनके इर्द-गिर्द थे यह चाहते थे कि वे उनकी बातों से जो ख़ुदा ही केहसक्ता है और उनकी कामों के ज़रिये उन को पेहचानकर उनके देवत्व को जानें| यीशु मसीह तो बहुत सारे सबूत देकर उन के बारे में फ़ैसला करने का स्वातंत्र्य तो इन्सानों को देते हैं| ख़ुदा होने का दावा कोई भी करसक्ता है |और इतिहास पढ़ेंगे तो हम देखते हैं कि बहुत सारे लोग अब तक ख़ुदा होने का दावा करचुके हैं| लेकिन सच्चा परमेशर ही उस दावे के सच्चे सबूत दे सकता है| और अगर सबूत मिलगये तो आराधना करने के बारे में आज्ञा देने की ज़रूरत भी नहीं पड़ती है | ख़ाली "मैं ख़ुदा हूँ" कहने से क्या फ़ायदा है? सिर्फ़ ऐसा कहने से कोई बेवक़ूफ़ भी विश्वास नहीं करेगा क्योंकि कहना चाहे तो कोई भी ऐसा कह सक्ता है| लेकिन जब उसने सबूत देचुका है तो ऐसी दावा फिर से करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती| जो सच्चाई को स्वीकारते हैं वे सबूत को पेहचानते हैं, मगर जो सच्चाई को नज़र अंदाज़ करते हैं या उपेक्षा करते हैं बावजूद उस दावा करने के, विश्वास नहीं करते| अगर आप प्रभु की हक़ीक़ी पहचान को जान चुके हैं तो उन केलिये आराधन अपने आप आपके दिलों में से निकल आयेगी|

मैं जानता हूँ कि यह तो एक अद्भुत विषय है, और विश्वास करने केलिये बहुत कठिन है| इसीलिये प्रभु के चेलों को भी इस विषय को समझने केलिये बहुत वक़्त लगा है| प्रभु के मरण, पुनरुत्थान के बाद उन से मिलने पर ही इस विषय की पूरी जानकारी वे समझने लगे| यूहन्ना की इंजील 20वा अध्याय के अंत में और मत्ती की इंजील 28वा अध्याय के अंत में हम देखते हैं कि प्रभु आराधना को स्वीकारते हैं और उसे प्रमाणित करते हैं| प्रभु तो आराधना की माँग नहीं करते हैं पर उसे स्वीकारते हैं और स्थापित करते हैं| अगर आप अपने आँखों को खोलकर देखेंगे तो ज़रूर आप प्रभु को जानने लगेंगे| परमेश्वर आप की रूहानी आंखे खोले और उनको जानने की रहमत आप पर अ़ता़ फ़रमाये|
आमीन|





क्या यीशु मसीह ने कहा है कि मैं खु़दा हूँ, या मेरी आराधना करो ?

सवाल:-
आज दुनिया में मसीही लोग यीशु मसीह को पूजते हैं, लेकिन आप मुझे बाइबल में यह दिखासकते हैं क्या जहाँ यीशु मसीह ने कहा हो कि मैं खु़दा हूँ, या मेरी आराधना करो ?

जवाब:-
इन ही शब्दों में यह सवाल मैं बहुत बार सुनचुका हूँ | मेरे जवाब में शायद आप को इस विषय को समझने की मदद मिलेगी |

यीशु  ने कहीं भी ऐसा नहीं कहा है कि "मैं ख़ुदा हूँ" या "मेरी आराधना करो"|

अगर कोई आदमी आप के पास आकर यह कहे कि "मैं ख़ुदा हूँ, मेरी आराधना करो" तो क्या आप -
1) उस पर विश्वास करने केलिये तैयार हैं?
2) उसकी आराधना करने केलिये तैयार हैं?

कोई भी एकेश्वरवादी इस बात को सुनने के बाद इस तरह का दावा करनेवाले इन्सान को एक ईश्वरनिन्दा करनेवाला या कुफ़्र बकनेवाला कहेगा|
अगर तुम्हारी भी यही प्रतिक्रिया है तो तुम प्रभु यीशु मसीह से वह बात क्यों पूछ रहे हो जो तुम खुद मानने के लिये तैयार नहीं हो| इस तरह का दावा करनेवाले लोगों को आम तौर पर उन्माद या पागल माना जाता है| यीशु मसीह को इन्सानों का यह प्रतिक्रिया मालूम है और इसी वजह से उस नादान या बेवक़ूफ़ तरीके से अपने दावे को पेश नहीं किया| लेकिन अप्रत्यक्ष या परोक्षार्थ से अपने दावे को ज़रूर पेश किया है|

यीशु मसीह ने अपने देवत्व का सबूत बाइबल में ज़रूर दिया है| अगर ऐसे सबूत बाइबल में हैं तो आप को उन सबूतों को मानना ही पड़ेगा और उनकी आराधना करनी ही पड़ेगी| परमेश्वर को स्वीकार करने से पेहले उसे हम यह हुकुम तो नहीं दे सकते कि किस रीति वह अपने आपको प्रकट करे|

उदाहरण केलिए यूहन्ना की इंजील में (अनन्त जीवन के बारे में बात करते हुए) यीशु मसीह ने कहा है कि- "पुनरुत्थान और जीवन मैं हूँ; जो कोई मुझ पर विश्वास करता है वह यदि मर भी जाए तौभी जीएगा"| अनन्त जीवन भी उन पर विश्वास करने से ही मिलने का शर्त पर आधारित है| खु़दा के सिवा और कोई ऐसा कहे तो वह ज़रूर ईश्वरनिंदा होजायेगा| इस तरह का दावा तो अलौकिक और अनोखा है| और उसे करने का अधिकार मसीह के पास होने का सबूत क्या है? इस दावा करने के वक़्त उसी दिन मसीह ने जो किया उसे हम वहीं पढ़ सकते हैं-

यह कहकर उसने बड़े शब्द से पुकारा, "हे लाज़र, निकल आ!" जो मर गया था वह कफ़न से हाथ पाँव बँधे हुए निकल आया, और उसका मुँह अँगोछे से लिपटा हुआ था|  यीशु ने उनसे कहा, "उसे खोल दो और जाने दो"| (यूहन्ना11:43-44).

अगर सारी इंजीलों को याने सुसमाचारोंको आप पढेंगे तो उस में हमेशा यह पाते हैं कि-
*यीशु परमेश्वर की तरह बात करते हैं
*यीशु परमेश्वर की तरह काम करते हैं
*इस दावा करने का अधिकार का सबूत भी असाधारण और अद्भुत कामों को करने के ज़रिये देते हैं|

तीन साल उन के पास रहने के बाद भी एक शागिर्द ने उन से यह पूछा कि -
"पिता को हमें दिखा दे"
तो प्रभु ने जवाब में यह कहा है कि-
"हे फ़िलिप्पुस, मैं इतने दिन से तुम्हारे साथ हूँ,और क्या तू मुझे नहीं जानता? जिसने मुझे देखा है वह पिता को देखा है|.....  मेरा विश्वास करो कि मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में है; नहीं तो कामों ही के कारण मेरा विश्वास करो| (यूहन्ना 14:9-11)

यीशु मसीह तो उनके चेलों से और उन लोगों से जो उनके इर्द-गिर्द थे यह चाहते थे कि वे उनकी बातों से जो ख़ुदा ही केहसक्ता है और उनकी कामों के ज़रिये उन को पेहचानकर उनके देवत्व को जानें| यीशु मसीह तो बहुत सारे सबूत देकर उन के बारे में फ़ैसला करने का स्वातंत्र्य तो इन्सानों को देते हैं| ख़ुदा होने का दावा कोई भी करसक्ता है |और इतिहास पढ़ेंगे तो हम देखते हैं कि बहुत सारे लोग अब तक ख़ुदा होने का दावा करचुके हैं| लेकिन सच्चा परमेशर ही उस दावे के सच्चे सबूत दे सकता है| और अगर सबूत मिलगये तो आराधना करने के बारे में आज्ञा देने की ज़रूरत भी नहीं पड़ती है | ख़ाली "मैं ख़ुदा हूँ" कहने से क्या फ़ायदा है? सिर्फ़ ऐसा कहने से कोई बेवक़ूफ़ भी विश्वास नहीं करेगा क्योंकि कहना चाहे तो कोई भी ऐसा कह सक्ता है| लेकिन जब उसने सबूत देचुका है तो ऐसी दावा फिर से करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती| जो सच्चाई को स्वीकारते हैं वे सबूत को पेहचानते हैं, मगर जो सच्चाई को नज़र अंदाज़ करते हैं या उपेक्षा करते हैं बावजूद उस दावा करने के, विश्वास नहीं करते| अगर आप प्रभु की हक़ीक़ी पहचान को जान चुके हैं तो उन केलिये आराधन अपने आप आपके दिलों में से निकल आयेगी|

मैं जानता हूँ कि यह तो एक अद्भुत विषय है, और विश्वास करने केलिये बहुत कठिन है| इसीलिये प्रभु के चेलों को भी इस विषय को समझने केलिये बहुत वक़्त लगा है| प्रभु के मरण, पुनरुत्थान के बाद उन से मिलने पर ही इस विषय की पूरी जानकारी वे समझने लगे| यूहन्ना की इंजील 20वा अध्याय के अंत में और मत्ती की इंजील 28वा अध्याय के अंत में हम देखते हैं कि प्रभु आराधना को स्वीकारते हैं और उसे प्रमाणित करते हैं| प्रभु तो आराधना की माँग नहीं करते हैं पर उसे स्वीकारते हैं और स्थापित करते हैं| अगर आप अपने आँखों को खोलकर देखेंगे तो ज़रूर आप प्रभु को जानने लगेंगे| परमेश्वर आप की रूहानी आंखे खोले और उनको जानने की रहमत आप पर अ़ता़ फ़रमाये|
आमीन|






खुदा कैसा मर सकता है?

इस्लामी सवाल :-
अगर यीशु खुदा हैं तो खुदा कैसा मर सकता है? जब यीशु क़ब्र में तीन दिन थे तो दुनिया कौन चला रहा था?
मसीही जवाब :-
इस सवाल से पता चलता है कि सवाल करने वाले के पास मसीही विश्वास के बारे में सही जानकारी बिल्कुल नहीं है। यानी वह ज़रूर यह नहीं जानता है कि मसीही लोग खुदा के बारे में क्या ईमान या खयाल रखते हैं?
1) मसीही लोग सिर्फ़ एक खुदा को मानते हैं, जिस में तीन व्यक्ति हैं। तो अगर एक व्यक्ति मर गया तो भी बाकी दो व्यक्ति दुनिया को चला सकते हैं। (इस तरह का जवाब हम इसलिए दिये हैं क्योंकि हम उन मुसल्मानों की बेवक़ूफ़ी को ज़ाहिर करना चाहते हैं, जो इस तरह के ग़लत सवाल पूछते हैं।)
2) फिर मसीह जो दूसरे व्यक्ति हैं, त्रियेकता के अंदर वह खुदा है और मनुष्य बनकर आये और मनुष्य होने के नाते मरे लेकिन खुदा होने के नाते नहीं। मगर खुदा होने के नाते यीशु ऐसा कहते हैं -
“यीशु ने उन को उत्तर दिया कि इस मन्दिर को ढा दो, और मैं उसे तीन दिन में खड़ा कर दूंगा। यहूदियों ने कहा, ‘इस मन्दिर के बनाने में छियालीस वर्ष लगे हें, और क्या तू उसे तीन दिन में खड़ा कर देगा’?” (यूहन्ना 2:19-21)
इसका मतलब यह है कि मुझे मार डालो और मैं खुद जीवित हो कर मेरे देह को तीसरे दिन खड़ा कर दूँगा जो तुम्हारे लिए परमेश्वर का मन्‍दिर है। यहाँ पर हम देख सकते हैं कि यीशु खुदा नहीं होते तो वह खुद ही को मुर्दों में से जीवित नहीं कर सकते थे।
3) यह सवाल करने वाला अपने आप को मुसलमान साबित नहीं करता बल्कि नास्तिक, क्योंकि वह समझता है कि मरने के बाद जीवन समाप्त हो जाता है, जो इस्लाम के ख़िलाफ़ है। और इस तरह के बेवुक़ूफ़ी का सावाल पूछकर वह इस्लाम का ही तौहीन या अपमान करके अपने आप को एक नास्तिक साबित करता है।
4) और चौथी बात यह है कि यह सवाल करने वाला इतना भी नहीं जानता कि बाइबल में मौत का क्या अर्थ है।
क्योंकि बाइबल दो प्रकार के मौत के बारे में बताती है।
(I). आत्मिक मौत -
इसका अर्थ है, कोई एक व्यक्ति जब परमेश्वर की संगति से दूर हो जाता है, तौभी वह अपने शरीर में जीवित रह सकता है।
उदाहरण केलिए -
तब यहोवा परमेश्वर ने आदम को लेकर अदन की वाटिका में रख दिया, कि वह उसमें काम करे और उसकी रक्षा करे। और यहोवा परमेश्वर ने आदम को यह आज्ञा दी, ‘‘तू वाटिका के सब वृक्षों का फल बिना खटके खा सकता है; पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना : क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाएगा उसी दिन अवश्य मर जाएगा’’ (उत्पत्ति 2:15-17)
यहोवा परमेश्वर ने जितने बनैले पशु बनाए थे, उन सब में सर्प धूर्त या, उस ने स्त्री से कहा, ‘‘क्या सच है कि परमेश्वर ने कहा, ‘तुम इस वाटिका के किसी वृक्ष का फल न खाना’?’’  स्त्री ने सर्प से कहा, ‘इस वाटिका के वृक्षों के फल हम खा सकते हैं; पर जो वृक्ष वाटिका के बीच में है, उसके फल के विषय में परमेश्वर ने कहा है कि न तो तुम उसको खाना और न उसको छूना, नहीं तो मर जाओगे’। तब सर्प ने स्त्री से कहा, ‘तुम निश्चय न मरोगे, वरन परमेश्वर आप जानता है, कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आँखें खुल जाएंगी, और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे’। अतः जब स्त्री ने देखा कि उस वृझ का फल खाने के लिए अच्छा, और देखने में मनभाऊ, और बुद्धि देने के लिये चाहनेयोग्य भी है; तब उसने उसमें से तोड़कर खाया, और अपने पति को भी दिया, और उसने भी खाया। (उत्पत्ति 3:1-6)
और फिर लिखा हुआ है -
फियहोवा परमेश्वर ने कहा, ‘मनुष्य भले बुरे का ज्ञान पाकर हम में से एक के समान हो गया है : इसलिये अब ऐसा न हो कि वह हाथ बढ़ाकर जीवन के वृझ का फल भी तोड़ के खा ले और सदा जीवित रहे’। इसलिये यहोवा परमेश्वर ने उसको अदन की वाटिका में से निकाल दिया कि वह उस भूमि पर खेती करे जिस में से वह बनाया गया था। इसलिये आदम को उसने निकाल दिया और जीवन के वृक्ष के मार्ग का पहरा देने के लिये अदन की वाटिका के पूर्व की ओर करूबों को, और चारों ओर घूमनेवाली ज्वालामय तलवार को भी नियुक्त कर दिया। (उत्पत्ति 3:22-24)
हम यहाँ देखते हैं कि आदम और उसकी पत्नी तो वह फल खाए मगर तुरंत मरे नहीं, बल्कि खुदा ने उन्हें अपनी उपस्थिति से निकाल दिया। इस के बारे में ऐसा लिखा हुवा है -
क्योंकि तू ऐसा ईश्वर नहीं जो दुष्टता से प्रसन्न हो; बुराई तेरे साथ नहीं रह सकती। घमंडी तेरे सम्मुख खड़े होने न पाएँगे; तुझे सब अनर्थकारियों से घृणा है। तू उनको जो झूठ बोलते हैं नष्ट करेगा; यहोवा तो हत्यारे और छली मनुष्य से घृणा करता है। (भजन संहिता 5:4-6)
उसने तुम्हें भी जिलाया, जो अपने अपराधों और पापोंके कारण मरे हुए थे। जिन में तुम पहले इस संसार की रीति पर, और आकाश के अधिकार के हाकिम अर्थात् उस आत्मा के अनुसार चलते थे, जो अब भी आज्ञा न माननेवालों में कार्य करता है। इनमें हम भी सब के सब पहले अपने शरीर की लालसाओं में दिन बिताते थे, और शरीर और मन की इच्छाएँ पूरी करते थे, और अन्य लोगों के समान स्‍वभाव ही से क्रोध की सन्‍तान थे। परन्‍तु परमेश्वर ने जो दया का धनी है, अपने उस बड़े प्रेम के कारण, जिस से उसने हम से प्रेम किया, जब हम अपराधों के कारण मरे हुए थे तो हमें मसीह के साथ जिलाया (अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है)। (इफ़िसयों की पत्री 2:1-5)
फिर इस के बारे में यीशु ने भी ऐसा कहा है -
एक और चेले ने उससे कहा, ‘हे प्रभु, मुझे पहले जाने दे कि अपने पिता को गाड़ दूँ’। यीशु ने उससे कहा, ‘तू मेरे पीछे हो ले, और मुरदों को अपने मुरदे गाड़ने दे’। (मत्ती 8:21-22)
इन सब वचनों से पता चलता है कि जो यीशु पर ईमान नहीं रखते हैं, वे अपने गुनाहों में मरे हुए हैं। मगर उनका जीवन समाप्त तो नहीं हुआ है, मगर वह खुदा की उपस्थिति से दूर हैं

(II). जिस्मानी (शारीरिक) मौत :-
हम बाइबल में देखते हैं कि शारीरिक मौत का अर्थ है आत्मा शरीर से अलग हो जाना।
निदान, जैसे देह आत्मा बिना मरी हुई है वैसा ही विश्वास भी कर्म बिना मरा हुआ है। (याकूब 2:26)
और जब उस ने पांचवी मुहर खोली, तो मैं ने वेदी के नीचे उन के प्राणों को देखा, जो परमेश्वर के वचन के कारण, और उस गवाही के कारण जो उन्होंने दी थी, वध किए गए थेऔर उन्होंने बड़े शब्द से पुकार कर कहा; हे स्वामी, हे पवित्र, और सत्य; तू कब तक न्याय न करेगा? और पृथ्वी के रहने वालों से हमारे लोहू का पलटा कब तक न लेगा? और उन में से हर एक को श्वेत वस्त्र दिया गया, और उन से कहा गया, कि और थोड़ी देर तक विश्राम करो, जब तक कि तुम्हारे संगी दास, और भाई, जो तुम्हारी नाई वध होने वाले हैं, उन की भी गिनती पूरी न हो ले। (प्रकाशित वाक्य 6:9-11)
यहाँ लिखा है कि जो लोग यीशु के गवाह होने की वजह से शहीद हो गए हैं, उन्होंने पुकार कर खुदावन्द यीशु मसीह से कहा कि ऐ खुदा! तू हमारा बदला कब लेगा? इसका मतलब है कि शारीरिक मौत के बावजूद भी हम खुदा से बातचीत कर सकते हैं, और हमारा जीवन समाप्त नहीं होता
पर तुम सिय्योन के पहाड़ के पास, और जीवते परमेश्वर के नगर, स्वर्गीय यरूशलेम के पास। और लाखों स्वर्गदूतों और उन पहिलौठों की साधारण सभा और कलीसिया, जिनके नाम स्वर्ग में लिखे हुए हैं, और सब के न्यायी परमेश्वर के पास, और सिद्ध किए हुए धर्मियों की आत्माओं। और नई वाचा के मध्यस्थ यीशु और छिड़काव के उस लहू के पास आए हो, जो हाबिल के लोहू से उत्तम बातें कहता है (इब्रानियों 12:22-24)
यहाँ लिखा है कि यीशु मसीह का खून हाबिल के खून से बेहतर बातें करता है। तो हम जानते हैं कि हाबिल मर तो गाया है, परन्तु वह खुदा से बातें कर सकता है। और ऐसा ही मसीह भी मर गए मगर तौभी खुदा से बातें करते हैं जिस से हम जानते हैं कि मरने के बाद भी जीवन समाप्त नहीं होता है
फिर लिखा हुआ है कि खुदा के लिए सब जीवित हैं। 
परन्तु इस बात को कि मरे हुए जी उठते हैं, मूसा ने भी झाड़ी की कथा में प्रगट की है, कि वह प्रभु को ‘अब्राहम का परमेश्वर, और इसहाक का परमेश्वर, और याकूब का परमेश्वर’ कहता है। (लूका 20:37)
मुसलमानों के लिए हमारा सवाल -
सवाल करनेवाला अपने कुरआन को भी नहीं समझता है। क्योंकि कुरआन के सूरह अल-बक़रह 2:154, सूरह अल-इमरान 3:169-170 में लिखा है कि जो लोग जंग में मारे गए हैं उन्हें “मुर्दा” न कहो, क्योंकि वे खुदा के साथ जीवित हैं।
और उन लोगों को जो अल्लाह के मार्ग में मारे जाते हैं, मुर्दा न कहो, वे तो जीवित हैं, परन्तु तुम्हें इसकी अनुभूति नहीं होती (सूरह अल-बक़रह 2:154)
और जो लोग अल्लाह के मार्ग में मारे गये, उन्हें मरा हुआ न समझो। बल्कि वे अपने ‘रब’ के पास जीइथ हैं, रोज़ी पा रहे हैं (सूरह आले इमरान 3:169)
इन आयतों के मुताबिक़ हम उन से इन सवालों को पूछ्ना चाहते हैं।
1) क्या आप अपनी ही किताब यानी क़ुर‍आन को भी नहीं जानते? क्या उसी वजह से ऐसे नासमझ सवाल पूछ रहे हैं? अगर आप क़ुर‍आन को समझते नहीं हैं तो आप को चाहिये कि अपनी किताब का सही अध्ययन पहिला करें; और अगर दूसरी किताबों की मदद के बिना कुर‍आन को पूरी तरह से समझ नहीं पाते है, तो इस बात को क़ुबूल करने से डरते क्यों हैं कि कुर‍आन पूरी तारह से मुकम्मिल किताब नहीं है?
2) अगर आप क़ुर‍आन की इन आयतों को जानते भी इस सवाल को पूछते हैं, तो आप ज़रूर बेईमान और धोखेबाज़ साबित होते हैं, जिन से हक़ीक़ी परमेश्वर यहोवाह को सख़्त नफ़रत है। और हक़ीक़ी परमेश्वर यहोवाह हर तरह के धोखेबाज़ को नरक का दंड देते हैं, तो ज़ाहिर है कि आप भी उसी दंड पानेवाले है।
इसलिए सवाल करनेवाले को चाहिए कि वह पहले मसीही विचारधारा को जाने, बाइबल में मौत का सही अर्थ को जाने, और कुरआन में मौत का मतलब को पहचाने।
मौत का मतलब जीवन का समाप्त होना नहीं है, बल्कि आत्मिक तौर से खुदा से अलग होना है। और यीशु मसीह मनुष्य होने के नाते मरे, मगर खुदा होने के नाते खुद को जीवित कर दिये और वही सबका न्याय करनेवाले हैं, क्योंकि यीशु खुदा हैं
आइए हम कुछ वचनों को पढ़े -
यीशु ने उनको उत्तर दिया, ‘इस मन्दिर को ढा दो, और मैं उसे तीन दिन में खड़ा कर दूंगा। यहूदियों ने कहा, ‘इस मन्दिर के बनाने में छियालीस वर्ष लगे हें, और क्या तू उसे तीन दिन में खड़ा कर देगा?’ परन्तु उस ने अपनी देह के मन्दिर के विषय में कहा था। अतः जब वह मुर्दों में से जी उठा तो उसके चेलों को स्मरण आया कि उसने यह कहा था; और उन्होंने पवित्र शास्त्र और उस वचन की जो यीशु ने कहा था, प्रतीति की (यूहन्ना 2:19-22)
पिता इसलिये मुझ से प्रेम रखता है, कि मैं अपना प्राण देता हूं, कि उसे फिर ले लूं। कोई उसे मुझ से छीनता नहीं, वरन मैं उसे आप ही देता हूँ। मुझे उसके देने का अधिकार है, और उसे फिर ले लेने का भी अधिकार है : यह आज्ञा मेरे पिता से मुझे मिली है (यूहन्ना 10:17-18)
देखो, वह बादलों के साथ आने वाला है, और हर एक आँख उसे देखेगी, वरन जिन्होंने उसे बेधा था वे भी उसे देखेंगे, और पृथ्वी के सारे कुल उसके कारण छाती पीटेंगे। हाँ। आमीन॥ प्रभु परमेश्वर, जो है और जो था और जो आनेवाला है, जो सर्वशक्तिमान है, यह कहता है, “मैं ही अल्फ़ा और ओमेगा हूँ”॥ जब मैं ने उसे देखा तो उसके पैरों पर मुर्दा सा गिर पड़ा। उसने मुझ पर अपना दाहिना हाथ रख कर यह कहा, “मत डर; मैं प्रथम और अन्तिम और जीवता हूँ। मैं मर गया था, और अब देख मैं युगानुयुग जीवता हूँ; और मृत्यु और अधोलोक की कुंजियाँ मेरे ही पास हैं। (प्रकाशितवाक्य 1:7-8,17-18)
स्मुरना की कलीसिया के दूत को यह लिख : “जो प्रथम और अन्तिम है, जो मर गया था और अब जीवित हो गया है, वह यह कहता है कि।” (प्रकाशितवाक्य2:8)
क्योंकि सेनाओं का यहोवा यों कहता है, उस तेज के प्रगट होने के बाद उस ने मुझे उन जातियों के पास भेजा है जो तुम्हें लूटती यीं, क्योंकि जो तुम को छूता है, वह मेरी आँख की पुतली ही को छूता है। देखो, मैं अपना हाथ उन पर उठाऊंगा, तब वे उन्हीं से लूटे जाएंगे जो उनके दास हुए थे। तब तुम जानोगे कि सेनाओं के यहोवा ने मुझे भेजा है। हे सिय्योन, ऊँचे स्वर से गा और आनन्द कर, क्योंकि देख, मैं आकर तेरे बीच में निवास करूंगा, यहोवा की यही वाणी है। (जकर्याह 2:8-10)
यीशु कहते हैं कि मैं ही अल्फ़ा और ओमेगा हूँ यानी ख़ादिर-ए-मुतलक़ खुदा हूँ। मैं मर गया था पर अब हमेशा के लिए ज़िंदा हूँ।
“आमीन”




आप ख़ुदा को कैसा पहचानेंगे?

सवाल और जवाब जिन पर हम सभी सहमत होंगे :
1. किसके नाम से प्रार्थना करने के लिए लोग इकट्ठे होते हैं?
ज) परमेश्वर के
2. जब लोग प्रार्थना करने के लिए इकट्ठे होते हैं, तब किसकी उपस्थिति वास्तव में वहाँ रहती है?
ज) परमेश्वर की
3. स्वर्गदूतों को कौन भेजता है?
ज) परमेश्वर
4. स्वर्ग राज्य के लिए चुने हुए लोग किसके हैं?
ज) परमेश्वर के
5. परमेश्वर के अनुयायियों के साथ किसकी उपस्थिति सदा रहती है?
ज) परमेश्वर की
6. परलोक में कौन रहता है?
ज) परमेश्वर
7. स्वर्ग से उतर कर नीचे कौन आता है?
ज) परमेश्वर
8. अनन्त जीवन प्राप्त करने के लिए हमें किस पर विश्वास लगाना चाहिए?
ज) परमेश्वर पर
9. किसके द्वारा हमें उद्धार प्राप्त होता है?
ज) परमेश्वर के
10. हमारे आत्मिक भूख और प्यास को संतुष्ट कौन करता है?
ज) परमेश्वर
11. अंतिम दिन में लोगों को फिर से कौन पुनर्जीवित करता है?
ज) परमेश्वर
12. जीवन की रोटी कौन है?
ज) परमेश्वर
13. किसकी बातें कभी न टलेंगी?
ज) परमेश्वर की
14. जीवन देने वाला या जीवन दाता कौन है?
ज) परमेश्वर
15. जीवन कौन है?
ज) परमेश्वर
16. अगर हम उसके लिए जीवन खो देंते हैं, तो फिर से जीवित करनेवाला कौन है?
ज) परमेश्वर
17. किसे हमें अपना उच्चतम प्यार देना चाहिए?
ज) परमेश्वर को
18. जीवन जल (पवित्र आत्मा) की धाराओं को कौन देता है?
ज) परमेश्वर
19. दुनिया की जोती (रोशनी) कौन है?
ज) परमेश्वर
20. कौन है जो लोगों को पाप से मुक्त करता है?
ज) परमेश्वर
21. पाप क्षमा करने का अधिकार किसे है?
ज) परमेश्वर
22. सनातन कौन है?  
ज) परमेश्वर
23. पुनरूत्थान और जीवन कौन है?
ज) परमेश्वर
24. "प्रभु" कहलाने का योग्य कौन है?
ज) परमेश्वर
25. विश्वासियों के लिए स्वर्ग में एक जगह तैयार कौन करता है?
ज) परमेश्वर
26. हमें अनन्त जीवन को पहुंचाने वाला "मार्ग" कौन है?
ज) परमेश्वर
27. हमें अनन्त जीवन को पहुंचाने वाला "सत्य" कौन है?
ज) परमेश्वर
28. हमें अच्छे फल फलने [भले काम करने] की शक्ति कौन देता है?
ज) परमेश्वर
29. वह कौन है जिस से अलग रहकर हम कुछ नहीं कर सकते हैं?
ज) परमेश्वर
30. मृत्यु और अधोलोक की कुंजियाँ किस के पास हैं?
ज) परमेश्वर
31. हृदय और मन को परखनेवाला कौन है?
ज) परमेश्वर
32. हमारे कामों के अनुसार बदला देनेवाला कौन है?
ज) परमेश्वर
33. मनुष्यों को न्याय करने के लिए आकाश के बादलों पर कौन आएगा?
ज) परमेश्वर
34. सब्त के दिन का प्रभु कौन है?
ज) परमेश्वर
35. नई सृष्टि के द्वरा सभी चीज़ों का नवीकरण करने के समय में अपने महिमा सिंहासन पर बैठने वाला कौन है?
ज) परमेश्वर
36. सभी लोगों का न्याय करने वाला न्यायी कौन है?
ज) परमेश्वर
क्या आप मुझसे सहमत हैं कि ऊपर दिये गये सभी गुण और विशेषताएँ केवल परमेश्वर से संबंधित हैं?
  • सहमत नहीं हूँ (आप क्यों सहमत नहीं हैं, और परमेश्वर को पहचानने के लिए और क्या ज़रूरत है?)
  • सहमत हूँ (तो आप इस के बारे में क्या कहते हैं?)
ईसाई लोग क्यों दावा करते हैं कि यीशु मसीह मनुष्य के रूप में आये हुए परमेशवर हैं?
इस अभिप्राय का आविष्कर ईसाइयों ने नहीं कीया था, बल्कि यीशु ही ख़ुद बार बार यह दावा करतें थे|

यीशु मसीह के दिये हुए जवाबों को अब हम देखेंगे:
1. किसके नाम से प्रार्थना करने के लिए लोग इकट्ठे होते हैं?
ज) प्रभु यीशु मसीह के नाम से
प्रभु यीशु ने कहा - "क्योंकि जहाँ दो या तीन मेरे नाम पर इकट्ठा होते हैं (प्रार्थना करने के लिए)" मत्ती 18:19,20
2. जब लोग प्रार्थना करने के लिए इकट्ठे होते हैं, तब किसकी उपस्थिति वास्तव में वहाँ रहती है?
ज) प्रभु यीशु मसीह की उपस्थिति
प्रभु यीशु ने कहा - "क्योंकि जहाँ दो या तीन मेरे नाम पर इकट्ठा होते हैं, वहाँ मैं उनके बीच में होता हूँ" मत्ती 18:19,20
3. स्वर्गदूतों को कौन भेजता है?
ज) प्रभु यीशु मसीह
प्रभु यीशु ने कहा - "मनुष्य का पुत्र अपने स्वर्गदूतों को भेजेगा" मत्ती 13:41
प्रभु यीशु ने कहा - "तब मनुष्य के पुत्र का चिह्न आकाश में दिखाई देगा, और तब पृथ्वी के सब कुलों के लोग छाती पीटेंगे; और मनुष्य के पुत्र को बड़ी सामर्थ्य और ऐश्वर्य के साथ आकाश के बादलों पर आते देखेंगे। वह तुरही के बड़े शब्द के साथ अपने दूतों को भेजेगा" मत्ती 24:30,31 [और मत्ती 16:27, 25:31]
4. स्वर्ग राज्य के लिए चुने हुए लोग किसके हैं?
ज) प्रभु यीशु मसीह के
प्रभु यीशु ने कहा - "और वे आकाश के इस छोर से उस छोर तक, चारों दिशाओं से उसके चुने हुओं को इकट्ठा करेंगे" मत्ती 24:30,31     
5. परमेश्वर के अनुयायियों के साथ किसकी उपस्थिति सदा रहती है?
ज) प्रभु यीशु मसीह की उपस्थिति
प्रभु यीशु ने कहा - "मैं जगत के अन्त तक सदा तुम्हारे संग हूँ" मत्ती 28:20
6. परलोक में कौन रहता है?
ज) प्रभु यीशु मसीह
प्रभु यीशु ने कहा - "कोई स्वर्ग पर नहीं चढ़ा केवल वही जो स्वर्ग से उतरा, अर्थात मनुष्य का पुत्र" यूहन्ना 3:13
7. स्वर्ग से उतर कर नीचे कौन आता है?
ज) प्रभु यीशु मसीह
प्रभु यीशु ने कहा - "जीवन की रोटी जो स्वर्ग से उतरी, मैं हूँ" यूहन्ना 6:51
प्रभु यीशु ने कहा - "मैं ऊपर का हूँ. ... मैं संसार का नहीं" यूहन्ना 8:23
प्रभु यीशु ने कहा - "मैं पिता की ओर से जगत में आया हूँ; मैं फिर जगत को छोड़कर पिता के पास जाता हूँ" यूहन्ना 16:28
8. अनन्त जीवन प्राप्त करने के लिए हमें किस पर विश्वास लगाना चाहिए?
ज) प्रभु यीशु मसीह पर
प्रभु यीशु ने कहा - "उसी रीति से अवश्य है कि मनुष्य का पुत्र भी ऊँचे पर चढ़ाया जाए; ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह अनन्त जीवन पाए" यूहन्ना 3:14,15
प्रभु यीशु ने कहा - "और मैं उन्हें अनन्त जीवन देता हूँ, वे कभी नष्ट न होंगी" यूहन्ना 10:28
9. किसके द्वारा हमें उद्धार प्राप्त होता है?
ज) प्रभु यीशु मसीह के द्वारा
प्रभु यीशु ने कहा - "द्वार मैं हूँ; यदि कोई मेरे द्वारा भीतर प्रवेश करे, तो उद्धार पाएगा" यूहन्ना 10:9
10. हमारे आत्मिक भूख और प्यास को संतुष्ट कौन करता है?
ज) प्रभु यीशु मसीह
प्रभु यीशु ने कहा - "जीवन की रोटी मैं हूँ: जो मेरे पास आता है वह कभी भूखा न होगा, और जो मुझ पर विश्वास करता है वह कभी प्यासा न होगा" यूहन्ना 6:35
11. अंतिम दिन में लोगों को फिर से कौन पुनर्जीवित करता है?
ज) प्रभु यीशु मसीह
प्रभु यीशु ने कहा - "जो कोई पुत्र को देखे और उस पर विश्वास करे, वह अनन्त जीवन पाए, और मैं उसे अंतिम दिन फिर जिला उठाऊँगा" यूहन्ना 6:40-44
12. जीवन की रोटी कौन है?
ज) प्रभु यीशु मसीह
प्रभु यीशु ने कहा - "जीवन की रोटी मैं हूँ" यूहन्ना 6:48
13. किसकी बातें कभी न टलेंगी?
ज) प्रभु यीशु मसीह की
प्रभु यीशु ने कहा - "आकाश और पृथ्वी टल जाएँगे, परन्तु मेरी बातें कभी न टलेंगी" मरकुस 13:31
14. जीवन देने वाला जीवन दाता कौन है?
ज) प्रभु यीशु मसीह
प्रभु यीशु ने कहा - "वह भी जो मुझे खाएगा मेरे कारण जीवित रहेगा" यूहन्ना 6:57
प्रभु यीशु ने कहा - "यदि कोई व्यक्ति मेरे वचन पर चलेगा, तो वह अनन्त काल तक मृत्यु को न देखेगा" यूहन्ना 8:51
15. जीवन कौन है?
ज) प्रभु यीशु मसीह
प्रभु यीशु ने कहा - "जीवन मैं ही हूँ" यूहन्ना 14:6
16. अगर हम उसके लिए जीवन खो देते हैं, तो फिर से जीवन देनेवाला कौन है?
ज) प्रभु यीशु मसीह
प्रभु यीशु ने कहा - "जो मेरे कारण अपना प्राण खोता है, वह उसे पाएगा" मत्ती 10:39
17. किसे हमें अपना उच्चतम प्यार देना चाहिए?
ज) प्रभु यीशु मसीह    
प्रभु यीशु ने कहा - "जो माता या पिता को मुझसे अधिक प्रिय जानता है, वह मेरे योग्य नहीं; और जो बेटा या बेटी को मुझ से अधिक प्रिय जानता है, वह मेरे योग्य नहीं" मत्ती 10:37,38
18. जीवन जल (पवित्र आत्मा) की धाराओं को कौन देता है?
ज) प्रभु यीशु मसीह
प्रभु यीशु ने कहा - "जो मुझ पर विश्वास करेगा, जैसा पवित्रशास्त्र में आया है, उसके हृदय में से जीवन के जल की नदियाँ बह निकलेंगी" यूहन्ना 7:38,39
19. दुनियाँ की जोती (रोशनी) कौन है?
ज) प्रभु यीशु मसीह
प्रभु यीशु ने कहा - "जगत की ज्योति मैं हूँ; जो मेरे पीछे हो लेगा वह अन्धकार में न चलेगा" यूहन्ना 8:12, 9:5
20. कौन है जो लोगों को पाप से मुक्त करता है?
ज) प्रभु यीशु मसीह
प्रभु यीशु ने कहा - "मैं तुम से सच सच कहता हूँ कि जो कोई पाप करता है वह पाप का दास है... इसलिये यदि पुत्र तुम्हें स्वतंत्र करेगा, तो सचमुच तुम स्वतंत्र हो जाओगे" यूहन्ना 8:34,36
21. पाप क्षमा करने का अधिकार किसे है?
ज) प्रभु यीशु मसीह को
प्रभु यीशु ने कहा - "परन्तु इसलिये कि तुम जान लो कि मनुष्य के पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का अधिकार है" मत्ती 9:6
22. सनातन कौन है?  
ज) प्रभु यीशु मसीह
प्रभु यीशु ने कहा - "कि पहले इसके कि अब्राहम उत्पन्न हुआ, मैं हूँ" यूहन्ना 8:58
23. पुनरूत्थान और जीवन कौन है?
ज) प्रभु यीशु मसीह
प्रभु यीशु ने कहा - "पुनरूत्थान और जीवन मैं ही हूँ; जो कोई मुझ पर विश्वास करता है वह यदि मर भी जाए तौभी जीएगा" यूहन्ना 11:25
24. "प्रभु" कहलाने का योग्य कौन है?
ज) प्रभु यीशु मसीह
प्रभु यीशु ने कहा - "तुम मुझे गुरु और प्रभु कहते हो, और ठीक ही कहते हो, क्योंकि मैं वही हूँ" यूहन्ना 13:13
25. विश्वासियों के लिए स्वर्ग में एक जगह तैयार कौन करता है?
ज) प्रभु यीशु मसीह
प्रभु यीशु ने कहा - "मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ" यूहन्ना 14:2
26. हमें अनन्त जीवन को पहुंचाने वाला "मार्ग" कौन है?
ज) प्रभु यीशु मसीह
प्रभु यीशु ने कहा - "मार्ग मैं ही हूँ" यूहन्ना 14:6
27. हमें अनन्त जीवन को पहुंचाने वाला "सत्य" कौन है?
ज) प्रभु यीशु मसीह
प्रभु यीशु ने कहा - "सत्य मैं ही हूँ" यूहन्ना 14:6
28. हमें अच्छे फल फलने [भले काम करने] की शक्ति कौन देता है?
ज) प्रभु यीशु मसीह
प्रभु यीशु ने कहा - "सच्ची दाखलता मैं हूँ. ... तुम मुझ में बने रहो, और मैं तुम में। जैसे डाली यदि दाखलता में बनी न रहे तो अपने आप से नहीं फल सकती, वैसे ही तुम भी यदि मुझ में बने न रहो तो नहीं फल सकते" यूहन्ना 15:1-4
29. वह कौन है जिससे अलग रहकर हम कुछ नहीं कर सकते हैं?  
ज) प्रभु यीशु मसीह
प्रभु यीशु ने कहा - "मुझ से अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते" यूहन्ना 15:5
30. मृत्यु और अधोलोक की कुंजियाँ किस के पास हैं?
ज) प्रभु यीशु मसीह
प्रभु यीशु ने कहा - "मैं प्रथम और अन्तिम और जीवता हूँ; मैं मर गया था, और अब देख मैं युगानुयुग जीवता हूँ; और मृत्यु और अधोलोक की कुंजियाँ मेरे ही पास हैं" प्रकाशितवाक्य 1:17,18
31. ह्रदय और मन को परखनेवाला कौन है?
ज) प्रभु यीशु मसीह
प्रभु यीशु ने कहा - "ह्रदय और मन का परखनेवाला मैं ही हूँ" प्रकाशितवाक्य 2:23
32. हमारे कामों के अनुसार बदला देनेवाला कौन है?
ज) प्रभु यीशु मसीह
प्रभु यीशु ने कहा - "मैं तुम में से हर एक को उसके कामों के अनुसार बदला दूँगा" प्रकाशितवाक्य 2:23
33. मनुष्यों को न्याय करने के लिए आकाश के बादलों पर कौन आएगा?
ज) प्रभु यीशु मसीह
तब महायाजक ने उससे कहा, "मैं तुझे जीवते परमेश्वर की शपथ देता हूँ कि यदि तू परमेश्वर का पुत्र मसीह है, तो हम से कह दे" यीशु ने उससे कहा, "तू ने आप ही कह दिया; वरन मैं तुम से यह भी कहता हूँ कि अब से तुम मनुष्य के पुत्र को सर्वशक्तिमान के दाहिनी ओर बैठे, और आकाश के बादलों पर आते देखोगे" मत्ती 26:63,64
34. सब्त के दिन का प्रभु कौन है?
ज) प्रभु यीशु मसीह
प्रभु यीशु ने कहा - "मनुष्य का पुत्र तो सब्त के दिन का भी प्रभु है" मत्ती 12:8
35. नई सृष्टि के द्वरा सभी चीजों का नवीकरण करते समय में अपनी महिमा सिंहासन पर बैठने वाला कौन है?
ज) प्रभु यीशु मसीह
प्रभु यीशु ने कहा - "नई सृष्टि में जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा के सिंहासन पर बैठेगा" मत्ती 19:28
36. सभी लोगों का न्याय करने वाला न्यायी कौन है?
ज) प्रभु यीशु मसीह
प्रभु यीशु ने कहा - "जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा में आएगा और सब स्वर्गदूत उसके साथ आएँगे, तो वह अपनी महिमा के सिंहासन पर विराजमान होगा। और जैसे चरवाहा भेड़ों को बाकरियों से अलग कर देता है, वैसे ही वह उन्हें एक दूसरे से अलग करेगा" मत्ती 25:31,32
प्रभु यीशु ने कहा - "इसलिये जागते रहो और हर समय प्रार्थना करते रहो कि तुम इन सब आनेवली घटनाओं से बचने और मनुष्य के पुत्र के सामने खड़े होने के योग्य बनो" लूका 21:36
प्रभु यीशु ने कहा - "पिता किसी का न्याय नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है, कि सब लोग जैसे पिता का आदर करते हैं वैसे ही पुत्र का भी आदर करें" यूहन्ना 5:22,23

प्रभु यीशु ने कहा - "मैं और पिता एक हैं" यूहन्ना 10:30
फिलिप्पुस ने उससे कहा, "हे प्रभु, पिता को हमें दिखा दे, यही हमारे लिये बहुत है।" यीशु ने उससे कहा, हे फिलिप्पुस, मैं इतने दिन से तुम्हारे साथ हूँ, और क्या तू मुझे नहीं जानता? जिसने मुझे देखा है उसने पिता को देखा है। तू क्यों कहता है कि पिता को हमें दिखा?" यूहन्ना 14:8, 9
ईसाई लोग क्यों दावा करते हैं कि यीशु मसीह मनुष्य के रूप में आये हुए परमेशवर हैं? इस अभिप्राय का आविष्कार ईसाइयों ने नहीं किया था, बल्कि यीशु ही खुद बार बार यह दावा करते हैं। ईसाई लोग तो यीशु मसीह के इन बातो पर विश्वास करते हैं और उन्हें स्वीकारते हैं। जो लोग इन बातों से असहमत हैं, वह यीशु मसीह को और उनकी बातों को भी ठुकराते हैं। और तो और सच्चे परमेशवर यहोवा के सभी नबियों की गवाही को ठुकराते हैं। इसलिए ऐसे अविश्वासियों को अनन्त जीवन कभी प्राप्त नहीं होगा। 





पवित्र बाइबल

हम बाइबल पर क्यों विश्वास करते हैं?

बाइबल अब तक की लिखी गयीं किताबों में से सब से बेहतरीन किताब है| यह हमें इस पृथ्वी पर जीने केलिये मदद करेगी, और इस से बढ़कर परमेश्वर के पास स्वर्ग में ज़रूर ले जाने की वादा और मदद करेगी| यह किताब सरल है पर बहुत उत्कृष्ट और प्रभावशाली है| यह किताब तो परमेश्वर का वचन होने का पक्का दावा करती है| इस किताब में 400 से अधिक बार हम यह पढ़ते हैं कि -"यहोवा योंकहता है", जिस से साबित होता है कि यह किताब परमेश्वर यहोवा की वाणी है| अपने बारे में यह किताब कहती है कि उसके सभी हिस्सों में परमेश्वर की प्रेरेणा है|
      2 तीमुथियुस 3:16 "सम्पूर्ण पवित्रशास्‍त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिये लाभदायक है।"
      2 पतरस 1:21 "क्‍योंकि कोई भी भविष्यद्वाणी मनुष्य की इच्‍छा से कभी नहीं हुई, पर भक्त जन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्वर की ओर से बोलते थे।"
इस तरह बाइबल जो परमेश्वर का वचन है, मनुष्यों की इच्छा से नहीं, किन्तु परमेश्वर के पवित्र अत्मा के द्वारा लिखी गयी है|  
प्रेरणा का स्वरूप 
बाइबल एक प्रेरित किताब है| इस का अर्थ यह है कि इसका लेखक और कर्ता स्वयं परमेश्वर ही है| परमेश्वर ने पवित्र आत्मा के रूप में मनुष्यों को ऐसा प्रेरित किया कि वे जब उसे लिखते थे तो परमेश्वर के अधिकार से लिखे और उस में कोई भी गलतियाँ नहीं थीं| इस तरह बाइबल की उत्पत्ति में परमेश्वर की प्रेरणा रहने से वह दुनिया की इक्लौती प्रेरित किताब बनी है जो सब से विश्वसनीय किताब है|
यह प्रेरणा कम से कम 1600 सालों के दीर्घ काल में होती आयी है, जो बाइबल की उत्पत्ति की किताब से प्रकाशितवाक्य की किताब तक हम पाते हैं| यहोवा परमेश्वर ने भी इन्सानों के ज़रिये अपने वचन को सुरक्षित किया था, जिन्हों ने हर समय में उन के प्रतिलिपि लिखते और उन के अनुवाद भी करते आये, जिस की वजह से अब तक इतने हज़ार सालों तक उसकी किताब सुरक्षित रही है| 
प्रेरणा का प्रमाण
धर्मनिरपेक्ष लोग जो इस दुनिया में हैं, बाइबल की प्रेरणा को इन्कार करते हैं और उसे सिर्फ़ इन्सानों की बनावट सोचते हैं| लेकिन वे परमेश्वर को नहीं जानते हैं जिस की वजह से वैसी बेईमानी दिखाते हैं| हम बाइबल की पूर्ण मौखिक प्रेरणा (प्लीनरी वर्बल इन्स्पिरेशन) पर विश्वास करते हैं| इस का अर्थ यह है कि पूरी बाइबल परमेश्वर से प्रेरित है| मौखिक प्रेरणा का अर्थ यह है कि बाइबल का हर लफ़्ज़ या शब्द परमेश्वर से प्रेरित है| परमेश्वर ने यिर्मयाह नबी से कहा -
      यिर्मयाह 1:9 " देख, मैं ने अपने वचन तेरे मुँह में डाल दिये हैं।"
यहोवा परमेश्वर का रसूल पौलुस ने कहा-
      1कुरिन्थियों 14:37 "जो बातें मैं तुम्हें लिखता हूँ, वे प्रभु की आज्ञाएँ हैं।"
बाइबल में पूर्ण मौखिक प्रेरणा होने का अर्थ यह नहीं है कि वह एक यांत्रिक हुक्मनामा (मेखानिकल डिक्टेशन) है, क्योंकि हर लेखक की शैली विशिष्ट और अलग अलग है| परमेश्वर ने इन्सानों की शब्दावली (वकाब्युलरी) को इस्तेमाल करके अपने सत्य को बयान किया| बाइबल के इन ही शब्दों के ज़रिये परमेश्वर अपनी मर्ज़ी बयान करता है और इन ही शब्दों के ज़रिये इन्सान भी अपनी ज़िन्दगी का उद्देश्य जान सकता है| 
परमेश्वर ने इस तरह अपनी विशेष सच्चाइयों को प्रकट किया जिसे उसके चुने हुये लोगों ने प्रमाणित करके दर्ज किये|
इस तरह बाइबल की प्रेरणा के प्रत्यक्ष दावे के साथ साथ, उस के लेखकों ने उन से पेहले जो लेखक थे उनके लेखनों को भी पूर्ण और प्रामाणित मानते थे| इसीलिये जब बाइबल के एक हिस्से को उठाकर दूसरी जगह मे लिखते थे तो यह परिचय भी देते थे कि -
      दानिय्येल 9:13 "जैसे मूसा की व्यवस्या में लिखा है,"
      मत्ती 2:5 "क्‍योंकि भविष्यद्वक्ता के द्वारा योंलिखा है|"
      मत्ती 4:4 "यीशु ने उत्तर दिया : लिखा है कि....."
      प्रेरितों 7:42 "सो परमेश्वर ने मुंह मोड़कर उन्‍हें छोड़ दिया, कि आकशगण को पूजें, जैसा भविष्यद्वक्ताओं की पुस्‍तक में लिखा है,"
      यूहन्ना 17:12 "जब मैं उन के साथ था, तो मैं ने तेरे उस नाम से, जो तू ने मुझे दिया है उनकी रक्षा की| मैं ने उनकी चौकसी की, और विनाश के पुत्र को छोड़ उनमें से काई नाश न हुआ, इसलिये कि पवित्रशास्‍त्र की बात पूरी हो।
      यूहन्ना 19:24 "यह इसलिथे हुआ, कि पवित्रशास्‍त्र की बात पूरी हो"
      यूहन्ना 19:28  "इस के बाद यीशु ने यह जानकर कि अब सब कुछ हो चुका, इसलिये कि पवित्रशास्‍त्र की बात पूरी हो कहा, मैं प्यासा हूँ।"
यहोवा खुदा के रसूल पतरस ने पौलुस रसूल के हाथ से लिखी गयीं लेखनों को पवित्र शास्त्र का दर्जा दिया है|
      2 पतरस 3:15  "और हमारे प्रभु के धीरज को उद्धार समझो, जैसे हमारे प्रिय भाई पौलुस ने भी उस ज्ञान के अनुसार जो उसे मिला, तुम्हें लिखा है।"
      2 पतरस 3:16  "वैसे ही उसने अपनी सब पत्रियों में भी इन बातों की चर्चा की है, जिन में कुछ बातें ऐसी हैं जिनका समझना कठिन है, और अनपढ़ और चंचल लोग उन     के अर्थों को भी पवित्रशास्‍त्र की और बातों की तरह खींच तानकर अपने ही नाश का कारण बनाते हैं।" 
प्रेरणा का महत्व
हमारे प्रभु यीशु मसीह ने पुराने नियम से बहुत बातों को स्वतंत्र रूप से उद्धृत (कोट) किये थे, जिस से बाइबल के पुराने नियम को बरकरार किये। उदाहरण केलिये-
यूहन्ना 5:39  "तुम पवित्रशास्‍त्र में ढूंढ़ते हो, क्‍योंकि समझते हो कि उस में अनन्‍त जीवन तुम्हें मिलता है; और यह वही है जो मेरी गवाही देता है।"
यूहन्ना 5:46  "क्‍योंकि यदि तुम मूसा का विश्वास करते, तो मेरा भी विश्वास करते, इसलिये कि उसने मेरे विषय में लिखा है।"
प्रभु यीशु मसीह ने अपनी बातों को भी परम सच होने की गवाही दी-
यूहन्ना 8:31  "तब यीशु ने उन यहूदियों से जिन्‍होंने उस पर विश्वास किया था, कहा, "यदि तुम मेरे वचन में बने रहोगे, तो सचमुच मेरे चेले ठहरोगे।"
यूहन्ना 8:32 "तुम सत्य को जानोगे, और सत्य तुम्हें स्‍वतंत्र करेगा।"
और एक जगह में उन्हों ने कहा-
यूहन्ना 14:6  "यीशु ने उससे कहा,"मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता।"
उन्हों ने यह भी बताया कि उनके इस दुनिया से जाने के बाद सत्य का आत्मा उनके चेलों को सत्य का मार्ग बतायेगा-
यूहन्ना 14:17  "अर्यात सत्य का आत्मा, जिसे संसार ग्रहण नहीं कर सकता, क्‍योंकि वह न उसे देखता है और न उसे जानता है; तुम उसे जानते हो, क्‍योंकि वह तुम्हारे साथ रहता है, और वह तुम में होगा।"
यूहन्ना 16:13  "परन्‍तु जब वह अर्यात सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्‍योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्‍तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा।"
उन्हों ने यह भी कहा है कि-
लूका 24:44  "फिर उस ने उनसे कहा, ये मेरी वे बातें हैं, जो मैं ने तुम्हारे साथ रहते हुए तुम से कही यीं कि अवश्य है कि जितनी बातें मूसा की व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं और भजनों की पुस्‍तकों में मेरे विषय में लिखी हैं, सब पूरी हों।"
इन लेखनों को समझने केलिये उन्हों ने उन की समझ खोल दी-
लूका 24:45  "तब उसने पवित्रशास्‍त्र बूझने के लिये उन की समझ खोल दी।"
इस तरह हमारे प्रभु स्वयम अपने चेलों को पवित्रशास्त्र बाइबल की सच्चाइयों को समझाये।" 
प्रभु ने गवाही दिया कि परमेश्वर के वचन या आज्ञाओं को घोषित करना ही उनकी सेवकाई है। उन्हों ने यह भी कहा कि परमेश्वर की आज्ञा अनन्‍त जीवन है।
यूहन्ना 12:50  "और मैं जानता हूँ कि उसकी आज्ञा अनन्‍त जीवन है। इसलिये मैं जो कुछ बोलता हूँ, वह जैसा पिता ने मुझ से कहा है वैसा ही बोलता हूँ।"
प्रभु ने इस तरह पाप में गिरी हुई दुनिया में यहोवा परमेश्वर की सच्चाइयों को और उनके प्रेम को बयान किया और अपनी मौत पर विश्वास करने केलिये बुलाया जो हम सभी केलिये पर्याप्त प्रायश्चित्त है।
हम ने देखा कि पवित्र बाइबल एक प्रेरित किताब है, जो कु़रआन की तरह कोई बेनाम अल्लाह की तरफ़ से नहीं आयी, किन्तु यहोवा परमेश्वर की तरफ़ से आयी है जो अब्राहम, इसहाक और याक़ूब का सच्चा परमेश्वर है। यह किताब उस प्रेमी परमेश्वर से प्रेरित है जिस से हम क़ुरआन के विपरीत इस में सभी लोगों केलिये परमेश्वर का प्यार देखते हैं। यह किताब तो संपूर्ण प्रेरित किताब है जो कु़रआन के विपरीत परमेश्वर यहोवा से सीधा उनके प्रेरितों के दिल ओ दिमागों मे उतरी है, बगैर कोई फ़रिश्ते या स्वर्ग्दूत के माध्यम से; क्योंकि शैता़न आप भी ज्योतिर्मय स्‍वर्गदूत का रूप धारण कर सकता है: क्योंकि लिखा है कि-
2कुरिन्थियों 11:14 "और यह कुछ अचम्भे की बात नहीं क्‍योंकि शैतान आप भी ज्योतिर्मय स्‍वर्गदूत का रूप धारण करता है।"
2कुरिन्थियों 11:15  "इसलिये यदि उसके सेवक भी धर्म के सेवकों का सा रूप धरें, तो कोई बड़ी बात नहीं, परन्‍तु उनका अन्‍त उनके कामों के अनुसार होगा।"
अगर आप एक मुस्लिम हैं तो हम आप से यह चाहते हैं कि आप अपने दिल के पूरे डर को हटाकर बाइबल पढ़ें. आप यहोवा परमेश्वर की हक़ीक़ी मुहब्बत को जानेंगे और उनके रूहानी बेटे प्रभु यीशु मसीह में हमेशा की ज़िन्दगी पायेंगे। ख़ुदा ता़ला इस अज़ीम पोशीदा बरकत को आप पर भी अ़ता फ़रमाये।
आमीन।